पुत्र की लम्बी आयु के लिये माताओं ने किया जीवित्पुत्रिका व्रत पूजनजौनपुर। मां शीतला चौकियां धाम सहित जनपद के लगभग क्षेत्रों में रविवार को माताओं ने अपने पुत्रों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए 24 घंटे निरजला जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत पूजन किया। शाम को मन्दिर के बगल में स्थित पवित्र कुण्ड के पूर्वी छोर पर सैकड़ों व्रती महिलाए, नवविवाहित जोड़े, नवजात बच्चों के साथ गाजे—बाजे विधि—विधान से पूजन किया गया। यह पूजन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। यह व्रत पौराणिक कथाओं पर आधारित है और इसे रखने वाली माताएं पूरे दिन निर्जला रहकर भगवान जीमूतवाहन सहित अन्य देवताओं की पूजा करती हैं। इस व्रत का उद्देश्य से अपने पुत्रों के लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना, बच्चों पर आने वाले संकटों से उनकी रक्षा करना, संतान की भलाई और सुख समृद्धि शान्ति की कामना की जाती है। यह व्रत खासकर पूर्वांचल समेत बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, नेपाल जैसे क्षेत्रों में श्रद्धापूर्वक किया जाता है। व्रत का समापन अगले दिन सुबह पूजा-अर्चना के बाद पारण करके किया जाता है। यह व्रत माताओं के संतान के प्रति निस्वार्थ प्रेम और अटूट आस्था का प्रतीक माना जाता है।
पुत्र की लम्बी आयु के लिये माताओं ने किया जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन
September 14, 2025
पुत्र की लम्बी आयु के लिये माताओं ने किया जीवित्पुत्रिका व्रत पूजनजौनपुर। मां शीतला चौकियां धाम सहित जनपद के लगभग क्षेत्रों में रविवार को माताओं ने अपने पुत्रों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए 24 घंटे निरजला जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत पूजन किया। शाम को मन्दिर के बगल में स्थित पवित्र कुण्ड के पूर्वी छोर पर सैकड़ों व्रती महिलाए, नवविवाहित जोड़े, नवजात बच्चों के साथ गाजे—बाजे विधि—विधान से पूजन किया गया। यह पूजन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। यह व्रत पौराणिक कथाओं पर आधारित है और इसे रखने वाली माताएं पूरे दिन निर्जला रहकर भगवान जीमूतवाहन सहित अन्य देवताओं की पूजा करती हैं। इस व्रत का उद्देश्य से अपने पुत्रों के लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना, बच्चों पर आने वाले संकटों से उनकी रक्षा करना, संतान की भलाई और सुख समृद्धि शान्ति की कामना की जाती है। यह व्रत खासकर पूर्वांचल समेत बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, नेपाल जैसे क्षेत्रों में श्रद्धापूर्वक किया जाता है। व्रत का समापन अगले दिन सुबह पूजा-अर्चना के बाद पारण करके किया जाता है। यह व्रत माताओं के संतान के प्रति निस्वार्थ प्रेम और अटूट आस्था का प्रतीक माना जाता है।